वंदनीय भारत भूमि
शश्यश्यामला भारत भूमी , अनुपम छटा मनोहर ।
उन्नत शैल शिखर मनमोहक , कल कल झरते निर्झर ।
आँख मिचौली करतीं सलिला , पुलकित करती जीवन ।
संपूरण धन धान संपदा , सबके लिये संजीवन ।
मीलों फैले निर्जन कानन ,वन औषिध आच्छादित।
शैल कन्दरा त्याग तपस्या , जन जीवन उल्लासित ।
सागर कलरव क्रीड़ा सुन्दर , मैदानी हरियाली ।
मणिमय मुकुट हिमालय जिसका शुभ्र धवल धौरों वाली ।
एक टक निहार कर तुझको प्रकति पुलकित तन मन होती ।
चरम परिणित जान रूप निज मुग्ध मगन खुश होती ।
भाग दक्षिण नारियल केला ताड तलाब अनोखे ।
रबड़ देवदार तरु भारी बहुतायत मैं मेवे सूखे ।
कहीं संतरा कहीं माल्टा ,कहीं ,अंगूरी सुरखाई।
आम अमर फल रसदायक आम्र पाल अमराई ।
कहीं हरित वन अप्रतिम शोभा , वसुधा बेल अनूठी।
कहीं थल कहीं उथली झीलें ,वनस्पति जीवन बूटी।
नीम पीपली तरु बहुतायत ,प्राणिन प्रकति उपकार । .
वन जंगम हैं बड़े विहंगम , तुलसी वन अलग बहार ।
कहीं चावल कहीं गेंहू जौ कहीं छायीं दालें ।
कहीं कहीं तू उगले आलू , कहीं साग नव पालें ।
कहीं चावल कहीं गेंहू जौ कहीं छायीं दालें ।
कहीं कहीं तू उगले आलू , कहीं साग नव पालें ।
अमरूदों का स्वाद अनूठा ,गंगा जमुन मैदान ।
सूखे मैं फल बरसाते हैं , पेड़ बेरि खेजड़ जान ।
मानवता मानव हित व्यापक उपादान भंडारण।
जरूरत नहीं कहीं देखन करो जगत व्यवहारण।
मानवता उच्चादर्शो को देती पूरा आश्रय।
अहम ब्रह्मास्मि उदबोधक सबको करती निर्भय।
पुरातन संस्कृति दुनिया माँ अजर अमर जग व्यापक।
विश्व मुखी तू विश्व पोषक , मानव जन कल्याणक ।
माँ तुम्ही तो नित्य हो देशों मैं बाँट दिया ।
तेरे अंग प्रत्यंगों को भी निर्दय बन काट दिया ।
देश देश को जोड़ जोडकर आर्यावर्त बनायेंगे ।
हम यह भी कर सकते पूरा दुनियां दिख लायेंगे ।